हिन्दुओं ने मुस्लिम समाज को और उनके तौर तरीकों को देखते हुए स्वयं को उनसे दूर रखने का भरपूर प्रयास किया किन्तु जब स्वतंत्रता के आंदोलन में काँग्रेस और गांधी जी ने हिन्दू-मुस्लिम एकता का राग अलापना शुरू किया तो उस समय के एक प्रभावशाली मुस्लिम नेता जियाउद्दीन रहमान ने एक प्रचलन को बढ़ावा दिया कि यदि कोई मुस्लिम किसी हिन्दू को खाने या पीने का सामान देता है तो उसमें थूक कर दे । इससे उस हिन्दू का शुद्ध मानस भ्रष्ट हो जाएगा और इस बात का पता चलने पर वह स्वयं को हीन महसूस करेगा । यह इस्लाम की एक मनोवैज्ञानिक चाल थी । क्योंकि जो हिन्दू समाज अपनी साफ सफाई और शुद्धता को स्थिर रखने के लिए किसी भी मुसलमान के हाथ का बना तो दूर की बात है वह तो किसी मुसलमान के साथ बैठ कर सात्विक खाना खाने से भी परहेज करता था । इसलिए अपनी गंदी और घृणित मानसिकता के चलते मुसलमानों को मुल्ला मौलवी यह पाठ पढ़ाते आ रहे हैं क्योंकि इस्लाम में फतवे वापस नहीं लिए जाते ।
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॥ जय श्री राम ॥
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