मुसलमानों का दावा है कि मुहम्मद अल्लाह के सबसे प्यारे रसूल हैं। और हर एक मुसलमान का मुहम्मद पर ईमान रखना और उनका अनुसरण करना अनिवार्य है। अल्लाह की तरह मुहम्मद से प्रेम करना ही ईमान की निशानी है। इसके लिए कुरान में स्पष्ट आदेश है कि – “यदि तुम अल्लाह से प्रेम करते हो ,तो मुहम्मद का अनुसरण करो।” {अली इमरान – 3:31}
कह दो, “ऐ नबी,” “यदि तुम अल्लाह से प्रेम करते हो तो मेरा अनुसरण करो। अल्लाह तुमसे प्रेम करेगा और तुम्हारे पापों को क्षमा कर देगा। निस्संदेह अल्लाह अत्यन्त क्षमाशील, दयावान है।”
Say, ˹O Prophet,˺ “If you ˹sincerely˺ love Allah, then follow me; Allah will love you and forgive your sins. For Allah is All-Forgiving, Most Merciful.”
قُلْ إِن كُنتُمْ تُحِبُّونَ ٱللَّهَ فَٱتَّبِعُونِى يُحْبِبْكُمُ ٱللَّهُ وَيَغْفِرْ لَكُمْ ذُنُوبَكُمْ ۗ وَٱللَّهُ غَفُورٌۭ رَّحِيمٌۭ ٣١
पहले तो अल्लाह लोगों से राजीखुशी से मुहम्मद पर ईमान रखने का आग्रह करता रहा और कहता रहा कि – “हे लोगो यदि तुम रसूल पर ईमान रखोगे तो यह तुम्हारे लिए अच्छा ही होगा” {सूरा निसा – 4:170}
ऐ लोगो! तुम्हारे पास तुम्हारे रब की ओर से रसूल हक़ लेकर आ चुका है। अतः तुम अपने भले के लिए ईमान लाओ। फिर यदि तुम इनकार करो तो जान लो कि जो कुछ आकाशों और धरती में है, वह अल्लाह ही का है। और अल्लाह सर्वज्ञ, तत्वदर्शी है।
O humanity! The Messenger has certainly come to you with the truth from your Lord, so believe for your own good. But if you disbelieve, then ˹know that˺ to Allah belongs whatever is in the heavens and the earth. And Allah is All-Knowing, All-Wise.
يَـٰٓأَيُّهَا ٱلنَّاسُ قَدْ جَآءَكُمُ ٱلرَّسُولُ بِٱلْحَقِّ مِن رَّبِّكُمْ فَـَٔامِنُوا۟ خَيْرًۭا لَّكُمْ ۚ وَإِن تَكْفُرُوا۟ فَإِنَّ لِلَّهِ مَا فِى ٱلسَّمَـٰوَٰتِ وَٱلْأَرْضِ ۚ وَكَانَ ٱللَّهُ عَلِيمًا حَكِيمًۭا ١٧٠
लेकिन फिर अल्लाह ने लोगों को धमकी देना और डराना शुरू कर दिया ,और कहने लगा कि “जो अल्लाह और उसके रसूल मुहम्मद पर ईमान नहीं लाया, तो ऐसे काफिरों के लिए हमने जहन्नम में दहकती हुई आग तैयार कर रखी है” {सूरा – अल फतह 8 :13} और
और जो कोई अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान न लाए तो हमने इनकार करनेवालों के लिए भड़कती हुई आग तैयार कर रखी है।
And whoever does not believe in Allah and His Messenger, then We surely have prepared for the disbelievers a blazing Fire.
وَمَن لَّمْ يُؤْمِنۢ بِٱللَّهِ وَرَسُولِهِۦ فَإِنَّآ أَعْتَدْنَا لِلْكَـٰفِرِينَ سَعِيرًۭا ١٣
यह इसलिए कि उन्होंने अल्लाह और उसके रसूल को झुठलाया। और जो कोई अल्लाह और उसके रसूल को झुठलाए, तो जान ले कि अल्लाह बहुत कठोर दण्ड देनेवाला है।
This is because they defied Allah and His Messenger. And whoever defies Allah and His Messenger, then ˹know that˺ Allah is surely severe in punishment.
ذَٰلِكَ بِأَنَّهُمْ شَآقُّوا۟ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥ ۚ وَمَن يُشَاقِقِ ٱللَّهَ وَرَسُولَهُۥ فَإِنَّ ٱللَّهَ شَدِيدُ ٱلْعِقَابِ ١٣
इन आयतों से पता चलता है की अल्लाह के बाद मुहम्मद का दूसरा स्थान है। मुसलमान यह भी दावा कराते हैं की अल्लाह ने मुहम्मद पर विशेष अनुग्रह या मेहरबानी कर रखी थी। जो दूसरे नबियों पर नहीं की थी। इसके आलावा अल्लाह ने मुहम्मद से कुछ वादे भी कर रखे थे, जैसे कि “हे रसूल अल्लाह का तुम पर सदा बड़ा अनुग्रह बना रहेगा” {सूरा – निसा 4:113}
जब नमाज़ समाप्त हो जाए तो अल्लाह को याद करो, चाहे खड़े हो, बैठे हो या लेटे हो। लेकिन जब तुम निश्चिंत हो जाओ तो नमाज़ क़ायम करो। निस्संदेह ईमान वालों पर नियत समय पर नमाज़ पढ़ना फ़र्ज़ है।
When the prayers are over, remember Allah—whether you are standing, sitting, or lying down. But when you are secure, establish regular prayers. Indeed, performing prayers is a duty on the believers at the appointed times.
فَإِذَا قَضَيْتُمُ ٱلصَّلَوٰةَ فَٱذْكُرُوا۟ ٱللَّهَ قِيَـٰمًۭا وَقُعُودًۭا وَعَلَىٰ جُنُوبِكُمْ ۚ فَإِذَا ٱطْمَأْنَنتُمْ فَأَقِيمُوا۟ ٱلصَّلَوٰةَ ۚ إِنَّ ٱلصَّلَوٰةَ كَانَتْ عَلَى ٱلْمُؤْمِنِينَ كِتَـٰبًۭا مَّوْقُوتًۭا ١٠٣
फिर अल्लाह ने मुहम्मद को यह भरोसा भी दिलाया और लालच भी दिलाया कि – “तुम्हारा रब न तो कभी तम्हें छोड़ेगा, और न कभी तुम से विमुख होगा और रब तुम्हें इतना सब देगा कि जिस से तुम पूरी तरह से राजी हो जाओगे” {सूरा -अज जुहा 93:3 से 5}
तुम्हारे रब ने न तो तुम्हें त्यागा है और न वह तुमसे घृणा करता है।
Your Lord ˹O Prophet˺ has not abandoned you, nor has He become hateful ˹of you˺.
مَا وَدَّعَكَ رَبُّكَ وَمَا قَلَىٰ ٣
और अगला जीवन निश्चित रूप से आपके लिए इस जीवन से कहीं बेहतर होगा।
And the next life is certainly far better for you than this one.
وَلَلْـَٔاخِرَةُ خَيْرٌۭ لَّكَ مِنَ ٱلْأُولَىٰ ٤
और तुम्हारा रब तुम्हें इतना अवश्य प्रदान करेगा कि तुम प्रसन्न हो जाओगे।
And ˹surely˺ your Lord will give so much to you that you will be pleased.
فَوَلَسَوْفَ يُعْطِيكَ رَبُّكَ فَتَرْضَىٰٓ ٥
इसके बाद अल्लाह ने रसूल बनाने के कारखाने को बंद कर दिया और इस कारखाने के दरवाजे पर ताला लगा कर सील लगा दी और यह भी कहा कि “मुहम्मद अल्लाह के रसूल और सारे नबियों के समापक है” ( seal of prophets ) {सूरा अल अहजाब – 33:40}
मुहम्मद तुम्हारे किसी आदमी के पिता नहीं हैं, बल्कि वह अल्लाह के रसूल और नबियों के मुहर हैं। और अल्लाह को हर चीज़ का पूरा ज्ञान है।
Muḥammad is not the father of any of your men,1 but is the Messenger of Allah and the seal of the prophets. And Allah has ˹perfect˺ knowledge of all things.
مَّا كَانَ مُحَمَّدٌ أَبَآ أَحَدٍۢ مِّن رِّجَالِكُمْ وَلَـٰكِن رَّسُولَ ٱللَّهِ وَخَاتَمَ ٱلنَّبِيِّـۧنَ ۗ وَكَانَ ٱللَّهُ بِكُلِّ شَىْءٍ عَلِيمًۭا ٤٠
अल्लाह ने आदम से लेकर मुहम्मद तक कई रसूल और नबी भेजे थे हम कुरान के आधार पर देखते हैं कि अल्लाह ने दुसरे नबियों पर कैसी कैसी मेहरबानियाँ की थी और उसे कौन कौन सी शक्तियां दी थी। लेकिन अगर इसे ध्यान से देखते है तो दिमाग में आता है कि अल्लाह ने मुहम्मद पर मेहरबानी कि थी या मुहम्मद के साथ बेईमानी की थी? और अल्लाह ने अपना वादा निभाया था या धोखा दिया था। कृपया ध्यान से पढ़िए
- 1 – मुहम्मद को छोटे कद का बनाया।
अल्लाह ने अपना पहला नबी आदम को बनाया था, जिसके कद की उंचाई 90 फुट थी, जो इन हदीसो से साबित होती है…
बुखारी -जिल्द 4 किताब 55 हदीस 543 और 544,
बुखारी -जिल्द 8 किताब 74 हदीस 246,
मुस्लिम -किताब 40 हदीस 6809.
(नोट -अरबी में आदम की लम्बाई 60 “जिराअ ” बताई गयी है, इसे “Cubits “भी कहते हैं। एक जिराअ 68 cm होता है)
लेकिन अल्लाह ने मुहम्मद का कद आम आदमियों से भी कम बनाया था। मुहम्मद की ऊंचाई सिर्फ 5 फुट 2 इंच थी। कृपया हदीस देखिये…
बुखारी -जिल्द 4 किताब 56 हदीस 750 और मुस्लिम -किताब 30 हदीस 5770
2 – मुहम्मद को कम आयु दी
अल्लाह ने अपने एक नबी नूह को 950 साल की आयु दी थी। यह कुरान से साबित होता है, “अल्लाह ने नूह को उन लोगों के पास भेजा और नूह एक हजार में पचास साल कम जिन्दा रहा”
सूरा -अल अनकबूत 9:14 और 15
लेकिन अल्लाह ने अपने प्यारे रसूल को सिर्फ 63 साल की आयु दी थी ( सन 570 से 632 तक )
यही नहीं अल्लाह ने मदीना के निवासी मुहम्मद के दुश्मन यहूदी कवि अबू आफाक को 120 साल की आयु दी थी। अगर मुहम्मद अप्रैल 623 में अबू आफाक का क़त्ल नहीं करता तो वह कई साल और जिन्दा रहता (देखें – तारीख इब्न इशाक पेज 465 )
3 – संतानों का सुख नहीं दिया
- इब्राहीम और दाऊद भी अल्लाह के नबी थे और अल्लाह ने उनकी संतानों को लम्बी आयु प्रदान की थी और राजपाट का वरदान भी दिया था। “हमने इब्राहीम की संतान को बड़ा राज्य प्रदान किया और लम्बी आयु दी।” {सूरा -निसा 4:54}
- “फिर हमने सुलेमान को दाऊद के राज्य का वारिस बनाया और उस पर विशेष अनुग्रह किया” {सूरा -अन नम्ल 27:15–16}
- मुहम्मद को इन नबियों का इतिहास ज्ञात था इसलिए उसने मुसलमानों को यह दुआ रटने को कहा था इसे “दरूदे इब्राहीम” कहा जाता है , (“अल्लाहुम्म बारिक अला मुहम्मदिन व् अला आले मुहम्मदिन, कमा बारिकता अला इब्राहीम व् अला आले इब्राहिम, इन्नक हमीदुन मजीद”} अर्थात “अल्लाह तू मुहम्मद और उसकी संतानों पर उसी तरह बरकत कर, जैसे तुने इब्राहीम और उसकी संतानों पर की थी।” लेकिन मुहम्मद और उसके साथियों की यह दुआ अल्लाह ने ख़ारिज कर दी और मुहम्मद के सात बच्चो में से छः मुहम्मद के सामने ही मर गए। इनमें तीन लड़के और चार लड़कियां थीं जिनमें लड़कों के नाम थे 1. अल कासिम, 2. ताहिर उर्फ़ अब्दुल्लाह 3. इब्राहीम (इब्राहीम एक गुलाम औरत मारिया किब्तिया के पेट से हुआ था और बीमार होकर मर गया था) और चार पुत्रियों के नाम इस प्रकार है 1. जैनब 2. रुकैय्या 3. उम्मे कुलसुम 4. फातिमा। इनमे सिर्फ फातिमा ही मुहम्मद की मौत के बाद मरी थी। बाकी को मुहम्मद ने ही दफ़न किया था अर्थात यहाँ भी अल्लाह ने मुहम्मद के साथ धोखा किया था।
4 – मुहम्मद को संजीवनी शक्ति नहीं दी
ईसा मसीह भी अल्लाह के रसूल थे, बाइबिल में उनके चमत्कारों की कहानियां भरी पड़ी है, इसी लिए ईसाई उनको मानते हैं। कुरान में भी कहा गया है कि अल्लाह ने ईसा मसीह को ऐसी शक्ति प्रदान की थी, कि जिस से ईसा मसीह बीमारों को ठीक कर देते थे, यही नहीं वह मरे हुए आदमी को जिन्दा कर सकते थे और मुर्दे उठकर चलने लगते थे। कुरान में लोखा है कि –
“अल्लाह ने ईसा मसीह को मुर्दों को जिन्दा करने की शक्ति प्रदान की थी ,और ईसा मुर्दों को फिरता कर देते थे” {सूरा-मायदा 5 :110″}
लेकिन जब मुहम्मद का एक साल से कम आयु का बेटा बुखार से जलता रहा, और मुहम्मद की किसी भी दुआ का अल्लाह पर कोई असर नहीं हुआ और आखिर में इब्राहीम छटपटाता कर मर गया। दुर्भाग्य से उस दिन सूर्यग्रहण भी था। मुहम्मद को तब भी समझ में नहीं आया कि अल्लाह धोखेबाज है. (इब्ने साद जिल्द 1 पेज 131 और 132 )
5 – मुहम्मद को लुटेरा बना दिया
सुलेमान भी अल्लाह का नबी था, जिसे अल्लाह ने राजा बनाया था। उसके पास धन दौलत की कोई कमी नहीं थी यही नहीं अल्लाह ने ऐसे जिन्नों और शैतानों को सुलेमान की सेवा में लगा दिया था जो समुद्र से मोती निकाल कर सुलेमान को देते थे, जिस से सुलेमान को धन की कोई कमी नहीं होती थी और उसका खजाना हमेशा भरा रहता था। इसके बारे में कुरान में इस प्रकार लिखा है कि- “हमने शैतानों को सुलेमान के अधीन बना रखा था .जो समुद्र में डुबकी मार कर मोती और कीमती खजाना निकाल देते थे” {सूरा -अल अम्बिया 21 :82}
लेकिन अल्लाह ने मुहम्मद और उसके परिवार के लोगों का खर्चा चलने के लिए कोई इंतजाम नहीं किया। अनपढ़ तो वह वैसे भी था इसी लिए मुहम्मद दूसरों की हत्या करके और लूट से अपना परिवार पालने लगा और लूट को जायज बताने लगा, लूट के माल को कुरान में गनीमत भी कहा जाता है इसके बारे में कुरान में लिखा है –
“लूट के माल को गनीमत का माल समझो” {सूरा – अनफाल 8 : 41}
- “आगे बहुत सी गनीमतें तुम्हारे हाथों में आएँगी और अल्लाह तुमसे और भी गनीमतों का वादा करता है जो भविष्य में तुम्हारे हाथों में आएँगी” {सूरा – अल फतह 48 : 19 और 20}
- अल्लाह का इशारा पाते ही मुहम्मद ने सिर्फ चार महीनों में चार बड़ी बड़ी लूट की वारदातें कर डालीं, बहुत से लोग भी मारे गए थे देखिये –
1 .जन 623 में नखल के 4 व्यापारियों को लूटा
2 .17 मार्च 623 को बनू कुरैजा के 70 लोगों की हत्या की ,और उनका माल लूटा .
3 .623 में ही मदीने के अबू आफाक की हत्या करके उसके कबीले का धन लूट लिया .
4 .अप्रेल 623 को ही मदीना के बनू कैनूना के कबीले के 400 लोगों की हत्या करते उनका माल लूट लिया। (इब्ने इशाक-पेज 465 से 475)
अगर अल्लाह चाहता तो मुहम्मद के लिए जन्नत से सोने की वर्षा कर देता या जमीन से सोने, हीरों की खदान निकाल देता ताकि मुहम्मद को इतना पाप नहीं करना पड़ता। लेकिन जब अल्लाह ही हत्या और लूट की शिक्षा देता हो, तो मुसलमान यह अपराध क्यों नहीं करेंगे। असल में अपराधों की जड़ अल्लाह ही है और दूसरा नंबर मुहम्मद का है और जिसका अनुसरण सभी मुसलमान कर रहे हैं।
6-सदा के लिए अनपढ़ बना दिया
कुरान की सूरा अनकबूत 29 : 48 में साफ लिखा है कि “पहले आप न तो कुछ पढ़ सकते थे और न हाथ से कुछ लिख सकते थे”, नहीं तो अविश्वासी लोग अवतरण पर संदेह करते (Muhammad,] thou hast never been able to recite any divine writ ere this one [was revealed], nor didst thou ever transcribe one with thine own hand – or else, they who try to disprove the truth [of thy revelation] might indeed have had cause to doubt [it]). (48)
(وَمَا كُنْتَ تَتْلُو مِنْ قَبْلِهِ مِنْ كِتَابٍ وَلَا تَخُطُّهُ بِيَمِينِكَ إِذًا لَارْتَابَ الْمُبْطِلُونَ)
लेकिन इतना होने पर भी अल्लाह ने मुहम्मद को इतना भी ज्ञान नहीं दिया की वह अल्लाह द्वारा भेजी आयतें खुद लिख लेते और जो दूसरों से लिखवाते थे उसे पढ़ कर जाँच कर लेते कि लिखने वाला सही लिख रहा है या नहीं? अल्लाह ने मुहम्मद को इतना कट्टर अनपढ़ बना दिया कि 63 साल की आयु में अरबी के 31 अक्षर नहीं सीख पाए यहाँ तक अपने नाम के 3 अक्षर नहीं सीख सके कि अपना नाम ही लिख लेते, यह धोखा नहीं तो क्या है?
7-मुहम्मद को जिब्रईल ने भी धोखा दिया
जिब्रईल एक ऐसा फ़रिश्ता था, जो अल्लाह और मुहम्मद के बीच में खबरें भेजता रहता था और कुरान की आयतें लाने के अतिरिक्त मुहम्मद को छोटी छोटी जानकारियाँ भी देता रहता था। वह कभी छुप जाता था और कभी मनुष्य का रूप धारण कर लेता था लेकिन मुहम्मद के साथ या आसपास ही रहता था जैसा कि इन हदीसों से जाहिर होता है –
- “जिब्रईल मुहम्मद के सामने ही प्रकट होता था” {बुखारी – जिल्द 4 किताब 54 हदीस 455}
- “जिब्रईल गुप्त रूप से मुहम्मद के साथ ही रहता था” {बुखारी – जिल्द 1 किताब 8 हदीस 345}
जिब्रईल मुहम्मद को ऐसी ऐसी बातें समझता था कि ,जिसे पढ़कर किसी भी बेशर्म को शर्म आ जाएगी, इसका नमूना देखिये,
- “पेशाब करते समय अपना लिंग हमेशा दायें हाथ में पकडे रहें ” {बुखारी -जिल्द 1 किताब 4 हदीस 156}
- “मलत्याग के बाद अपनी गुदा को पत्थर से असम संख्या ( odd number ) बार घिसें ” {बुखारी -जिल्द 1 किताब 4 हदीस 163}
आप लोग ही विचार करिए कि जब जिब्रईल मुहम्मद को हगनी मुतनी बातें भी समझाया करता था और मुहम्मद के साथ ही घूमता फिरता रहता था तो जब मुहम्मद को जहर दिया गया था तब उस समय ये जिब्रईल कहाँ मर गया था? अल्लाह ने किसी दुसरे फ़रिश्ते के द्वारा मुहम्मद को पहले से सचेत क्यों नहीं किया? अल्लाह ने अपने प्यारे रसूल को क्यों नहीं बचाया? हिन्दुओं के विष्णु भगवान तो एक हाथी को बचाने के लिए क्षीर सागर से जमीन पर दौड़कर चले आये थे। तो फिर अल्लाह ने मुहम्मद को ऐसी कष्टदायी मौत क्यों मरने दिया? मुहम्मद की मौत बहुत ही दर्दनाक थी, जैसा इन हदीसों में लिखा है –
“एक औरत ने मुहम्मद के खाने में जहर मिला दिया था, जिसके कारण उनकी तबीयत बिगड़ती चली गयी और उनको भारी पीड़ा होने लगी थी जिस से राहत पाने के लिए रसूल अल्लाह से मदद माँगते रहते थे”
बुखारी -जिल्द 3 किताब 47 हदीस 786
मुस्लिम -किताब 26 हदीस 5430
जहर से मुहम्मद को कैसा कष्ट हुआ था और वह कैसे मरा था यह इस हदीस से पता चलता है,
“रसूल को दिया गया जहर इतना तेज था कि उसके असर से रसूल के गले की मुख्य धमनी ( Aorta ) कट गयी थी। जिस से रसूल को सांस लेने में भी तकलीफ हो रही थी और वह दर्द से बुरी तरह तड़प रहे थे .और आखिर वह इसी हालत में इस दुनिया से कूच कर गए” {सुन्नन अबू दाऊद-किताब 34 हदीस 4498}
इस हदीस में गौर करने की बात यह है कि मुहम्मद अपने गले की मुख्य धमनी (Aorta ) कट जाने के कारण दर्द से तड़पते हुए मरा था और मुसलमान भी जानवरों को हलाल करते समय जानवरों के गले की मुख्य धमनी काट देते हैं जिस से जानवर का खून बहता रहता है और वह मुहम्मद की तरह तड़प तड़प कर मर जाता है।
अब अगर कोई जाकिर नायक का समर्थक या कोई मुस्लिम स्कॉलर कोई ऐसी हदीस दिखा दे जिस से साबित हो सके कि मुहमद के गले की धमनी कट जाने पर उसे कोई कष्ट नहीं हुआ था बल्कि मजा आ रहा था तो हम मान लेंगे कि हलाल करते समय जानवरों को कोई तकलीफ नहीं होती। अब मुस्लिम स्कॉलर कितने भी कुतर्क करें लेकिन इन प्रमाणों से सिद्ध होता है कि अल्लाह और जिब्रईल ने मुहम्मद के साथ हर विषय में धोखा किया था और अल्लाह अपने वादे से मुकर गया था।
जो अल्लाह अपने ही बनाये हुए रसूल मुहम्मद के साथ विश्वासघात कर सकता है वह अल्लाह मुसलमानों के साथ क्या व्यवहार करेगा? फिर ऐसे अल्लाह और उसके फ़रिश्ते पर ईमान रखने की क्या जरुरत है? सेकुलर लोगों को गंभीरता से सोचना चाहिए कि जब मुसलमानों का अल्लाह और जिब्रईल ऐसे धोखेबाज हैं तो मदरसाछाप मुसलमान कैसे होंगे हम इन मुसलमानों पर भरोसा कैसे कर सकते हैं? हमारे सामने अफगानिस्तान के राष्ट्रपति हामिद करजई का ताजा उदहारण मौजूद है जिसने भारत के उपकारों को भूलकर भारत से धोखा किया और पाकिस्तान से धार्मिक मित्रता का हाथ मिला लिया। अंत में हमें एक दिन इस बात को स्वीकार करना ही पड़ेगा कि –